तु गंगाकी मोज¶
अकेली मत जइयो राधे जमुना के तीर
तू गंगा की मौज, मैं जमुना का धारा हो रहेगा मिलन, ये हमारा हमारा, तुम्हारा रहेगा मिलन ये हमारा तुम्हारा
अगर तू है सागर तो मझधार मैं हूँ तेरे दिल की कश्ती का पतवार मैं हूँ चलेगी अकेले न तुमसे ये नैय्या मिलेंगी न मंज़िल तुम्हें बिन खिवैया चले आओ जी, चले आओ जी चले आओ मौजों का ले कर सहारा, हो रहेगा मिलन ये हमारा तुम्हारा...
भला कैसे टूटेंगे बंधन ये दिल के बिछड़ती नहीं मौज से मौज मिल के छुपोगे भँवर में तो छुपने न देंगे डुबो देंगे नैया तुम्हें ढूँढ लेंगे बनायेंगे हम, बनायेंगे हम बनायेंगे तूफ़ाँ को लेकर किनारा, हो रहेगा मिलन ये हमारा तुम्हारा...