देवा श्री गणेशा¶
देवा श्री गणेशा, देवा श्री गणेशा देवा श्री गणेशा, देवा श्री गणेशा देवा श्री गणेशा, देवा श्री गणेशा देवा श्री गणेशा, देवा श्री गणेशा
ज्वाला सी जलती है आँखों में जिसके भी दिल में तेरा नाम है परवाह ही क्या उसका आरंभ कैसा है और कैसा परिणाम है धरती अंबर सितारे, उसकी नज़रें उतारें डर भी उससे डरा रे, जिसकी रखवालिया रे करता साया तेरा हे देवा श्री गणेशा देवा श्री गणेशा, देवा श्री गणेशा...
तेरी भक्ति तो वरदान है, जो कमाए वो धनवान है बिन किनारे की कश्ती है वो, देवा तुझसे जो अन्जान है यूँ तो मूषक सवारी तेरी, सब पे है पहरेदारी तेरी पाप की आँधियाँ लाख हों, कभी ज्योती ना हारी तेरी अपनी तकदीर का वो, खुद सिकंदर हुआ रे भूल के ये जहां रे, जिस किसी ने यहाँ रे साथ पाया तेरा हे देवा श्री गणेशा...
तेरी धूली का टीका किए, देवा जो भक्त तेरा जिए उसे अमृत का है मोह क्या, हँस के विष का वो प्याला पिए तेरी महिमा की छाया तले, काल के रथ का पहिया चले एक चिंगारी प्रतिशोध से, खड़ी रावण की लंका जले शत्रुओं की कतारें, इक अकेले से हारे कण भी परबत हुआ रे, श्लोक बन के जहाँ रे नाम आया तेरा हे देवा श्री गणेशा...
गणपति बप्पा मोर्या