राधा कैसे ना जले¶
मधुबन में जो कन्हैय्या किसी गोपी से मिले कभी मुस्काये, कभी छेड़े, कभी बात करे राधा कैसे ना जले, राधा कैसे ना जले आग तन मन में लगे, राधा कैसे ना जले
मधुबन में भले कान्हा किसी गोपी से मिले मन में तो राधा के ही प्रेम के हैं फूल खिले किसलिये राधा जले, किसलिये राधा जले बिना सोचे समझे, किसलिये राधा जले
गोपियाँ तारें हैं, चाँद है राधा फिर क्यों है उस को बिसवास आधा कान्हाजी का जो सदा इधर उधर ध्यान रहे राधा बेचारी को फिर अपने पे क्या मान रहे गोपियाँ आनी जानी हैं राधा तो मन की रानी है साँझ सकारे, जमुना किनारे राधा राधा ही कान्हा पुकारे बाहों के हार का जो डाले कोई कान्हा के गले राधा कैसे ना जले
मन मैं है राधे को कान्हा जो बसाये तो कान्हा काहे को उसे ना बताये प्रेम की अपनी अलग बोली, अलग भासा है बात नैनों से हो कान्हा की यही आसा है कान्हा के ये जो नैना हैं छिने गोपियों के चैना है मिली नज़रीयां, हुई बावारीयां गोरी गोरी सी कोई गुज़रीयां कान्हा का प्यार किसी गोपी के मन में जो पले किसलिये राधा जले